An Introductory Blog of Urdu Poetry-Form "NAZM"
नज़्म क्या है?
‘नज़्म’ अक्सर आपने ये लफ़्ज़ मुझको लिखते या कहते सुना होगा(In My Podcast)। तो आपके ज़हन में ये सवाल ज़रूर आता होगा कि आख़िर ये नज़्म है क्या? क्या यह कविता है या उर्दू शायरी का कोई रूप। तो चलिए आज जानते इन्हीं सब सवालों के जवाब और साथ ही जानेंगे कि आख़िर नज़्में कितनी तरह होती हैं।
नज़्म |
आग़ाज़ करते हैं कि नज़्म आख़िर है क्या?
नज़्म अरबी ज़ुबान का इक लफ़्ज़ होता है जिसके मायने ‘पिरोना’ होता है। असल में उर्दू में लिखी गयी कोई कविता नज़्म की श्रेणी में ही आती है सिवाय ग़ज़ल के। आज उर्दू शायरी में दो ही बड़ी विधायें हैं पहली नज़्म और दूसरी ग़ज़ल।
नज़्म हमेशा एक ही मौज़ूअ(विषय) पर लिखी जाती है। जबकि ग़ज़ल में हर शे’र के साथ विषय में तब्दीली लायी जा सकती है। पर नज़्म के साथ ऐसा नहीं होता है ये एक तरह से एक छोटा फ़साना होती है जो अंत में अपने अंजाम तक पहुँचती है।
नज़्मों की अगर क़िस्मों की बात करें तो नज़्म मुख्यतः 3 तरह की होती हैं।
1- पाबंद नज़्म
2- आज़ाद नज़्म
3- नस्री नज़्म
अब एक-एक कर मैं आपको इनके बारे में बताता हूँ बड़े ही आसान शब्दों में।
पाबंद नज़्म |
पाबंद नज़्म
ये वो नज़्में होती हैं जिसमें बिल्कुल ग़ज़ल की तरह ही बहर, रदीफ़ और क़ाफ़िया होते हैं। हालाँकि रदीफ़ का होना ज़रूरी नहीं है। पर पाबंद नज़्म में ग़ज़ल की ही तरह सही वज़्न , बहर और क़ाफ़िआ का होना ज़रूरी है। पाबंद नज़्म की भी कई क़िस्में हैं:
1- बैत या क़तअ बंद- दो मिसरों की नज़्म
2- सुलासी- तीन मिसरे की नज़्म
3- रुबाई, क़सीदा- चार मिसरों की नज़्म
4- मुख़म्मस- पाँच मिसरों की नज़्म
5- मुसद्दस- छ: मिसरों की नज़्म
आज़ाद नज़्म |
आज़ाद नज़्म
अक्सर हम ‘आज़ाद’ नाम सुनकर ये अनुमान लगाते हैं कि आज़ाद मतलब मुक्त यानि ऐसी नज़्में जिसमें बहर, रदीफ़ और क़ाफ़िए की कोई पाबंदी नहीं, ही आज़ाद नज़्में कहलाती हैं। पर ऐसा नहीं है आज़ाद नज़्म में बहर की पाबंदी है परंतु रदीफ़ और क़ाफ़िए की पाबंदी नहीं है। पर ऐसा भी नहीं है कि क़ाफ़िए मिल जाए तो कोई हर्ज़ होगा। इससे तो नज़्म में और भी ख़ूबसूरती ही आयेगी। आज़ाद नज़्म में एक और बात जानने वाली है कि इसमें बहर के अर्कान की ता’दाद निश्चित नहीं होती है मतलब हम बहर के अर्कान में कुछ कम-ओ-बेशी कर सकते हैं।
नस्री नज़्म |
नस्री नज़्म
नस्री नज़्म आज दौर में काफ़ी नयी विधा है। शायद इसलिए ही आज के दौर में काफ़ी लोकप्रिय भी है। नस्री नज़्म में कोई भी पाबंदी नहीं होती है ना इसमें रदीफ़ की पाबंदी ना क़ाफ़िए और ना ही बहर की। अगर कहें तो बस एक ही पाबंदी है इसमें जो कि लगभग नज़्म की सारी सिन्फ़(विधा) में है ‘विषय’ की पाबंदी।
नस्री नज़्म का एक उदाहरण-
कौन गुनहगार
आज सुब्ह जब आसमाँ पर काले
घनेरे अब्रों का बसेरा था
मैं अपने बाम पर रखी मेज़ पर
कल के अख़बार के वरक़ पलट रहा था
इक ख़बर दिखी उस में जो उतर नहीं रही थी
ज़ेहन से कई मर्तबा ध्यान भटकाने की
जिद्द-ओ-जहद भी की पर कामयाब न हुआ
अख़बार भी मुरझा गया था इस ख़बर से
शायद अज़ाब था उसे भी
कैसे कोई इंसान दूसरे इंसान को मार देता है
कुछ यूँ महसूस हो रहा था जैसे उस
दूसरे इंसान के सुर्ख़ ख़ून के धब्बे मेरे अख़बार
के वरक़ पर भी पड़े थे
इक अजीब सी ताज़े ख़ून की बू आने लगी थी
कौन था गुनहगार इस क़त्ल का
वो पहला इंसान जिस की थी फ़ितरत ऐसी
या ख़ुद ख़ुदा
जिस ने बनाया था वो क़ातिल इंसान
फ़ैसला अभी भी बाक़ी है।
-उत्कर्ष खरे 'मुसाफ़िर'
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उम्मीद करता हूँ आपको नज़्म की कुछ बारीक़ियां बड़े ही आसान शब्दों में समझ आयीं होंगी। और अगर इस आर्टिकल में कोई कमी या ख़ामी नज़र आती है तो आप मुझे ज़रूर बताएँ। आप मुझे ई-मेल कर सकते हैं contact@utkarshmusafir.com पर या Contact Us पर भी आप मुझसे सम्पर्क कर सकते हैं। उम्मीद करता हूँ मेरा यह ब्लॉग आपको जानकारी पूर्ण (Informative) लगा होगा। अगर आपको यह जानकारी पढ़कर अच्छा लगा तो कमेंट में ज़रूर बताएँ ,और भी ऐसे ही विषय जिन पर आप कुछ नया पढ़ना चाहते हैं वो भी बताएँ। इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर भी करें। ताकि सभी तक ये जानकारी पहुँच पाए। ऐसे ही शिक्षात्मक(educational) ब्लॉग और कुछ नयी सुकून भरी नज़्मों को पढ़ने के लिए ज़रूर विज़िट करें मेरी वेबसाइट www.utkarshmusafir.com पर।