K.G.F(Kolar Gold Fields)-History, Closure of KGF & Impact of Closure on local residents)
अभी कुछ दिन पहले ही एक फ़िल्म(Movie) का दूसरा भाग रिलीज़(Release) किया गया है जिसने कुछ ही दिनों में 645 करोड़ रूपये का वर्ल्डवाइड(Worldwide) बिज़नेस(Business) किया है। वह फ़िल्म जिसमें मुख्य भूमिका में कन्नड़ सुपरस्टार ‘यश’ हैं। वह फ़िल्म जिसका पहला भाग सन् 2018 में रिलीज़ किया गया था। वह फ़िल्म जिसने कन्नड़ फ़िल्म इंडस्ट्री(Industry) का एक तरह से भाग्य बदल दिया। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ मेगाहिट फ़िल्म K.G.F की।
हम सबने लगभग इस फ़िल्म को देखा होगा। पर क्या आपके ज़हन इस फ़िल्म को देखते वक़्त यह ख़याल आया था कि आख़िर ये K.G.F. है क्या? क्या है इसका पूरा मतलब(Full Form)? और क्या है इसके पीछे का असल इतिहास?(फ़िल्म की कहानी तो आप जानते ही हैं कि काल्पनिक थी)।
अगर हाँ तो यह ब्लॉग आपके लिए है। आज इस ब्लॉग में मैं आपके ज़हन में पैदा हो रहे कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब दूँगा और बताऊँगा आपको इस फ़िल्म के नाम यानि K.G.F की पूरी असल कहानी। तो बढ़ते हैं आगे।(आगे ज़रूर पढ़ें)
KGF की साल 1913 की तस्वीर |
K.G.F. है क्या(History Of K.G.F.)
K.G.F. जिसका पूरा मतलब है ‘कोलार गोल्ड फ़ील्ड’(Kolar Gold Field)। यह भारत वर्ष के कर्नाटक राज्य के कोलार ज़िले में स्थित एक खनन क्षेत्र है। यह खनन क्षेत्र कोलार ज़िले से लगभग 30 किमी.(19 Miles) और कर्नाटक राज्य की राजधानी बैंगलुरु से लगभग 100 किमी.(62 Miles) दूरी पर स्थित है। यह क्षेत्र लगभग 100 सालों से भी अधिक वर्षों से सोने की खनन के लिए जाना जाता रहा है। कोलार क्षेत्र में बहुत से राजवंशों ने शासन किया है, वहाँ मिले शिलालेखों में महावली, कदंब, चालुक्य, पल्लव, वैदुम्बा, राष्ट्रकूट,चोल और मैसूर राजवंशों के शासनकाल के संकेत मिलते हैं।
सन् 1804-1805 के लगभग एक रिपोर्ट छपी थी जिसमें इस बात का ज़िक्र किया गया था कि कोलार की मिट्टी में सोना है या यहाँ खुदाई पर सोना निकलता है। पर उस वक़्त इस बात पर किसी ने गौर नहीं किया। फिर सन् 1871 के लगभग एक ब्रिटिश सेना(British Army) से सेवानिवृत्त(Retired) सैनिक माइकल फिट्ज़गेराल्ड लैवले(Michal Fitzgerald Levelle), जो कि बैंगलोर(अब बैंगलुरु) में बस चुका था, ने सन् 1804 में छपी इस रिपोर्ट के बारे में पढ़ा। तब उसने सोचा कि क्यूँ ना मैं भी इस बात की पुष्टि करूँ और एक प्रयास करूँ। तब उसने इस खनन क्षेत्र पर कई सारे सर्वेक्षण करवाए और अंततः वह इस बात की पुष्टि कर पाया कि वाक़ई कोलार की मिट्टी में सोना है। फिर सन् 1875 में उसे सरकार से भी कोलार की ज़मीन पर खनन करने इजाज़त(Permission) मिल गयी। पर चूँकि माइकल के पास इतना पैसा(Fund) नहीं था कि वह कोलार पर वृहद् रूप से खनन कर पाये।
इसलिए सन् 1880 में इस खनन की पूरी ज़िम्मेदारी जॉन टेलर-तृतीय(John Taylor-III) की फ़र्म ‘जॉन टेलर एंड सन्स’(John Taylor & Sons) को दे दी गयी। जिसने यहाँ सबसे आधुनिकतम खनन उपकरण(State of the art mining equipment) को लगाया। जिसकी वजह से सन् 1902 आते-आते भारत वर्ष का 95% सोने का उत्पादन K.G.F. से होने लगा।
कावेरी पावर प्लांट की सैटेलाइट तस्वीर |
First & Earliest Hydroelectric Power Plant
जैसा कि मैंने ऊपर आपको बताया कि ‘जॉन टेलर एंड संस’ ने KGF में खनन के लिए सबसे आधुनिकतम खनन उपकरण लगाये थे। तो ऐसे आधुनिकतम उपकरण को चलाने के लिए बिजली की आवश्यकता भी थी। तब सन् 1902 में देश में पहला और सर्वप्रथम हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर प्लांट(Hydroelectric Power Plant) लगाया गया था। जिसे आज हम ‘कावेरी पॉवर प्लांट’ के नाम से जानते हैं।सबसे रोचक बात यह है कि उस वक़्त जब बैंगलोर और मैसूर जैसे शहरों में बिजली उपलब्ध नहीं हो पाई थी उस वक़्त कोलार पूरी तरह विघुतीकृत(Electrified) हो चुका था।
मिनी-इंग्लैंड |
Mini-England
सन् 1902 के बाद जब KGF से देश का 95% सोने का उत्पादन होने लगा। उसके पश्चात् कोलार में कई ब्रिटिश अधिकारी और इंजीनियर आकर रहने लगे थे। तब उन्होंने अपनी सुविधा के लिए कोलार को नये तरीक़े से बसाया। उन्होंने वहाँ कई विशाल घर और क्लब हाउस(club house) का निर्माण कराया। जिससे वहाँ आने पर ऐसा महसूस होता था कि जैसे इंग्लैंड(England) में आ गये हैं। इसलिए ही आगे चलकर कोलार को मिनी-इंग्लैंड(Mini-England) कहा जाने लगा था।
एक खान के अंदर की तस्वीर |
Closure of KGF
KGF में आज़ादी के कुछ साल बाद तक यानि सन् 1956 तक ‘जॉन टेलर एंड संस’ ने ही खनन कराया था। इस ब्रिटिश कम्पनी ने लगभग 76 सालों तक KGF में खनन कराया था। उसके पश्चात् KGF का खनन का ज़िम्मा राज्य सरकार ले लिया था। फिर सन् 1972 में KGF में खनन के लिए भारत सरकार ने एक नये उपक्रम PSU(Public sector Unit) ‘भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड’(Bharat Gold Mines Limited) का गठन किया। पर जिस KGF में सन् 1880 में सोना मात्र 1 किमी. की गहराई पर आसानी उपलब्ध हो जाता था। उसी KGF में अब सोने की उपलब्धता 3 किमी. की गहराई पर पहुँच गयी थी। किसी भी खान में 3 किमी. यानि 10000 फ़ीट की गहराई काफ़ी गहरी होती है और जैसे-जैसे गहराई पर पहुँचते हैं वैसे-वैसे तापमान भी बढ़ता जाता है। 10000 फ़ीट की गहराई पर तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस पर रहता है और इस तापमान पर किसी भी मज़दूर के लिए काम करना आसान नहीं था। और यह BGML और सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती भी थी। (एक रिपोर्ट के अनुसार KGF में काम करने वाले मज़दूरों में 6000 से ज़्यादा मज़दूरों को अपनी जान गँवानी पड़ी थी)
इसके साथ ही KGF में सोने की उपलब्धता भी घट गयी थी।
जहां पहले यानि सन् 1880 में 1 टन अयस्क(1 Ton Ore) में 46 ग्राम सोना निकलता था वहीं 1990 आते-आते 1 टन अयस्क में मात्र 3 ग्राम सोना निकलने लगा। जिसकी वजह से इतना बड़ा माइनिंग ऑपरेशन(Mining Operation) BGML के लिए चलाना बड़ा ही लाभहीन(Unprofitable)
हो गया था। इसलिए 28 फ़रवरी सन् 2001 में यह माइनिंग ऑपरेशन(Mining Operation) बंद कर दिया गया। पर इस खनन का बंद होना बड़ा ही अचानक था इसको बंद करने से पहले किसी भी तरह की कोई प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं किया गया। जिसके कारण यहाँ काम कर रहे हज़ारों मज़दूरों पर काफ़ी गहरा असर पड़ा।
KGF में रहने वाले स्थानीय लोग |
Impact of KGF closure
KGF के अचानक से बंद हो जाने से वहाँ के रहने वालों और खनन से अपनी रोज़ी-रोटी चलाने वालों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। सन् 2001 के बाद जब अचानक से KGF में खनन(Mining) का काम बंद कर दिया गया था, उस वजह से वहाँ के रहने वालों लोगों की तो जैसे रोज़ी-रोटी ही बंद हो गयी थी। कोलार में रहने में बहुत से लोग KGF में खनन का काम किया करते थे। अचानक से रोज़गार ख़त्म हो जाने की वजह से वहाँ काम करने वाले हज़ारों मज़दूरों को अब काम के लिए बैंगलोर जाना पड़ रहा था और यह हाल KGF में आज के वक़्त भी है। आज भी वहाँ रोज़गार के अवसर उपलब्ध नहीं हो पाये हैं।
KGF के बंद हो जाने पर वहाँ के लोगों पर दूसरा गहरा प्रभाव यह पड़ा कि KGF जो कि सन् 1902 में पूरे भारत वर्ष में पहली ऐसी जगह थी जहां पूर्णतया बिजली आ चुकी थी। वहाँ KGF के बंद हो जाने बाद बिजली और पानी की गहरी समस्या पैदा हो चुकी थी। वहाँ के लोगों को आज भी बिजली और पीने के साफ़ पानी की समस्या से रू-ब-रू होना पड़ता है।
सन् 2001 में जब KGF में खनन का काम बंद हुआ था उस वक़्त वहाँ ख़ुदाई की गई मिट्टी को जैसे-के-तैसे छोड़ दिया गया था जिन्हें आज वहाँ बड़े-बड़े पहाड़ों के रूप में देखा जा सकता है। और यह पहाड़ ख़ुदाई में इस्तेमाल विभिन्न रसायनों से ज़हरीले भी हो चुके है।इन पहाड़ों से होकर खेतों तक जाने वाला बारिश का पानी वहाँ की ज़मीनों को बंजर कर रहा है। साथ ही गर्मी के दिनों में इन पहाड़ों से उड़ी ज़हरीली धूल के महीन कड़ लोगों में त्वचा रोग और श्वसन संबंधी बीमारियाँ पैदा कर रहे हैं।
KGF के लोगों को ऊपर दी गयी इन समस्याओं का आज भी सामना कर पड़ रहा है। वहाँ के लोगों ने सरकार से दरख़्वास्त भी की है कि वे उनके लिए कुछ करे। और कर्नाटक सरकार ने इसका आश्वासन भी दिया है। अब ये देखना होगा कि सरकार के दिये आश्वासन कितने दिनों में फलीभूत होते हैं।
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