है इक आख़िरी सलाम
मेरे वतन के लोगों से
है आख़िरी इल्तिज़ा मेरे
वतन के लोगों से,
मेरे जाने के बाद तुम
आँखों से अश्क़ ना बहाना,
मेरे जाने के बाद मेरा मातम
ना मनाना,
कोई पूछे ग़र मेरा नाम तो
मेरा नाम ना बताना ,
बस कह देना था इक
दीवाना, था इक दीवाना,
वतन की मिट्टी का दीवाना,
मेरे जाने के बाद
मेरे घर को ख़ूब सजाना,
मेरे जाने के बाद तुम सारे
त्योहार मनाना,
किसी कोने में ग़र रोती मिले
मेरी अम्मा,
तो उसे बताना,
उसका बेटा अब बन गया है
इक अफ़साना,
जिसे मुमकिन ना होगा अब
मिटाना,
इक दफ़ा मेरी महबूबा का
हाल भी लेकर आना,
ज़िद्दी है बतायेगी नहीं,
फिर भी कहना उससे,
तो क्या हुआ नहीं मिले हम
मिलेंगे फिर किसी और जनम,
हो तब तलक ग़र मुमकिन तो
मुझे भूल जाना,
मरने से नहीं लगता डर मुझे,
इक दिन
बदन से गिरा लहू का कतरा
देश की मिट्टी में मिल जायेगा,
पर मरने बाद भी मुझे
मेरा वतन बहुत याद आयेगा।
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